हाथी का शीश ही क्यों श्रीगणेश के लगा- जानिए क्या है पौराणिक कथा
देश में गणेश उत्सव की धूम जारी है. बप्पा की भक्ती में लीन भक्त हर्षोल्लास के साथ गणेश उत्सव मना रहे हैं. इस दौरान हम भी भगवान गणेश से जुड़े कई रोचक तथ्य और कथाओं को आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. इसी के तहत आज हम आपको भगवान गणेश से जुड़े एक और रहस्य से रूबरू करवाएंगे. क्या आप जानते हैं कि भगवान गणेश का सिर कट जाने के बाद उन्हें हाथी का सिर ही क्यों लगाया गया.
भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय देवता का स्थान प्राप्त है और उन्हें हर कोई खुश करना चाहता है. ऐसा कहा जाता है कि जब गणेश भगवान का मस्तक कटा, तब उनके पिता यानी भगवान शंकर चाहते तो किसी का भी सिर लगा सकते थे, लेकिन उन्होंने लगाया तो सिर्फ हाथी का सिर. इसके पीछे वजह क्या थी, आइए समझते हैं.
भोलेनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगी हल्दी उतारकर एक बालक का पुतला बनाया और दिव्य शक्तियों से उसमें प्राण डाल दिए. माता पार्वती ने उस बालक का नाम विनायक रखा. इसके बाद माता पार्वती जब स्नान के लिए जाने लगीं तो उन्होंने विनायक से कहा कि तुम द्वार पर बैठो और किसी को अंदर मत आने देना. भगवान गणेश ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए किसी को अंदर नहीं जाने दिया. भगवान शिव को भी गणेश जी ने मां पार्वती के कहने पर बाहर ही रोक दिया जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गए. भोलेनाथ को यह नहीं पता था की गणेश जी कौन हैं और उन्होंने अपने त्रिशूल से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया. यह देखकर मां पार्वती रोने लगती हैं और बहुत क्रोधित हो जाती हैं. मां पार्वती भगवान शिव को गणेश जी को फिर से जीवित करने को कहती हैं. भगवान शिव अपने गणों से कहते हैं कि जाओ और उत्तर दिशा में जो सबसे पहला सिर दिखे उसे ले कर आओ. जब शिव गण सिर लेने जाते हैं तो उन्हें उत्तर दिशा में सबसे पहले इंद्र का हाथी ऐरावत मिलता है और वो उसका सिर ले आते हैं. इसके बाद भगवान शिव अपने पुत्र गणेश जी को हाथी का सिर लगा कर जीवित कर देते हैं.
गजासुर राक्षस से जुड़ी कथा
कूर्म पुराण के अनुसार गजासुर नामक एक राक्षस भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था और दिन-रात उन्हें प्रसन्न करने के लिए आराधना में लीन रहता था. उसका जन्म गज और असुर के संयोग से हुआ था और मुख भी गज के समान था. उसकी भक्ति को देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उससे वरदान मांगने को कहा. गजासुर राक्षस ने वरदान में प्रभु को उसके पेट में ही निवास करने को कहा. इस वरदान को पूरा करने के लिए शिव जी गजासुर के पेट में समा गए. जब भोलेनाथ को मां पार्वती खोजने लगीं तो वो कहीं नहीं मिले. उन्होंने विष्णु जी को भोलेनाथ का पता लगाने को कहा और भगवान विष्णु ने अपनी लीला दिखाई और भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी और नंदी गजासुर के महल में नाचने के लिए गए. नंदी का अद्भुत नृत्य देखकर गजासुर बहुत प्रसन्न हो गया और नंदी को वरदान मांगने को कहा. फिर नंदी महाराज ने अपनी चतुराई से भोलेनाथ को मांग लिया. गजासुर समझ गया कि उसके महल में स्वयं भगवान पधारे हैं और उसे अपना वचन निभाना पड़ा. गजासुर के वजन पूरा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि समय आने पर उसे ऐसा मान सम्मान मिलेगा कि लोग तुम्हारी पूजा करेंगे. जब भोले बाबा ने गणेश भगवान का सिर काटा था तब श्रीहरि ने गजासुर का ही शीश काट कर लगाने को दिया था और ऐसे भगवान गणेश के धड़ पर एक हाथी का सिर लग गया और गजासुर के मुख को वो सम्मान मिला जिसका वचन श्रीहरि ने दिया था