महाकुंभ का आयोजन 12 साल बाद ही क्यों होता है?

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महाकुंभ दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है और हिंदू धर्म में भी इसे काफी पवित्र माना जाता है। प्रयागराज में गंगा यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम पर इसका आयोजन किया जाता है।

महाकुंभ मेला 12 साल बाद क्यों होता है, इस सवाल का जवाब कई पौराणिक कथाओं में देखा जा सकता है। दरअसल, माना जाता है महाकुंभ का संबंध समुद्र मंथन से है। इस दौरान मंथन से अमृत निकला था, जिसे लेकर देवताओं और असुरों के बीच लड़ाई छिड़ गई। माना जाता है अमृत कलश से कुछ बूंदे निकलकर धरती के 4 स्थानों पर गिरी – हरिद्वार, उज्जैन, नासिक, प्रयागराज।

इन्हीं 4 स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। माना जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक ये युद्ध चला था जो मनुष्य के 12 साल के बराबर होते हैं। यही वजह है 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। जानकारी के अनुसार, अर्धकुंभ मेला हर 6 साल में केवल प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित होता है, वहीं पूर्णकुंभ हर 12 साल में केवल प्रयागराज में ही होता है।

 

कुंभ मेले की खास तिथियां

  • 13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा
  • 14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान)
  • 29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या (दूसरा शाही स्नान)
  • 3 फरवरी 2025: वसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)
  • 4 फरवरी 2025: अचला सप्तमी
  • 12 फरवरी 2025: माघी पूर्णिमा
  • 26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि (आखिरी स्नान)

40 करोड़ से अधिक आ सकते हैं लोग

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ 2025 में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आ सकते हैं। 2013 के कुंभ की तुलना में 2025 में प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ मेले का क्षेत्रफल दोगुने से अधिक है। बता दें, योगी सरकार ने महाकुंभ 2025 के आयोजन के लिए 2600 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया था। महाकुंभ के समय बेहतर प्रशासन के लिए यूपी सरकार ने महाकुंभ क्षेत्र को एक नया जिला घोषित किया है।

तीर्थयात्रा का राजा है प्रयागराज

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज को शास्त्रों में तीर्थराज यानी तीर्थ स्थलों का राजा कहा गया है। ऐसा भी माना जाता है ब्रह्मा जी ने पहला यज्ञ प्रयागराज में ही किया था। मान्यता है कि कुंभ मेले में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है और इससे जन्म -मृत्यु के चक्र से भी मुक्ति मिल जाती है।
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