मां लक्ष्मी की उत्पत्ति, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

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हिंदू धर्म के अनुसार सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित माने गए हैं. जिस तरह सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ और मंगलवार का दिन बजरंग बली को समर्पित होता है. उसी तरह शु्क्रवार का दिन भगवान विष्णु की अर्धांगिनी मां लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) को समर्पित माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि मां का कोई भी भक्त अगर शुक्रवार के दिन विधि-विधान से मां की पूजा-आराधना करता है तो मां उससे प्रसन्न हो जाती हैं और उसे जीवन में कभी भी धन संबंधी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है. इसके साथ ही उसके जीवन में सुख एवं शांति का भी वास हो जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी. क्षीर सागर में देवताओं और दानवों के बीच हुए समुद्र मंथन के दौरान मां का आविर्भाव हुआ था. आइए जानते हैं माता लक्ष्मी की उत्पत्ति की संपूर्ण कथा

मां लक्ष्मी की उत्पत्ति की कथा
धन की देवी और भगवान विष्णु की अर्धांगिनी मां लक्ष्मी की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने क्रोधी स्वभाव के लिए पहचाने जाने वाले ऋषि दुर्वासा ने एक बार राजा इंद्र को सम्मान में फूलों की माला भेंट की थी. इस माला को राजा इंद्र ने अपने हाथी ऐरावत के सिर पर रख दिया था. ऐरावत ने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया. ये देखकर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होंने इंद्र को श्राप दिया की इस अहंकार के चलते तुम्हारा पुरुषार्थ क्षीण हो जाएगा और राज-पाट भी छिन जाएगा.

कालांतर में तीनों लोकों में दानवों का अत्याचार बढ़ने लगा और उनका तीनों लोकों में आधिपत्य हो गया. इसके चलते राजा इंद्र का सिंहासन भी छिन गया. इसके बाद घबराए देवतागण भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे. इस पर भगवान ने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी और समुद्र मंथन से निकलने वाले अमृत के पान का कहा. इससे देवता अमर हो जाएंगे और वे दानवों को हराने में सफल होंगे.भगवान विष्णु के कहने पर क्षीर सागर में समु्द्र मंथन किया गया. इसमें 14 रत्नों के साथ ही अमृत और विष भी निकला. समुद्र मंथन के दौरान ही मां लक्ष्मी की भी उत्पत्ति हुई थी. जिसे भगवान विष्णु द्वारा अपनी अर्धांगिनी के रूप में धारण किया गया.

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