नाग पंचमी पौराणिक व्रत कथा

0 25

अब मैं पंचमी कल्प का वर्णन करता हूं। पंचमी तिथि नागों को अत्यन्त प्रिय है और उन्हें आनन्द देने वाली है। इस दिन नागलोक में विशिष्ट उत्सव होता है। पंचमी तिथि को जो व्यक्ति नागों को दूध से स्‍नान कराता है, उसके कुल में वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक तथा धनंजय- ये सभी बड़े-बड़े नाग अभय दान देते हैं- उसके कुल में सर्प का भय नहीं रहता। एक बार माता के शाप से नागलोग जलने लग गए थे। इसलिए उस दाह की व्यथा को दूर करने के लिए पंचमी को गाय के दूध से नागों को आज भी लोग स्‍नान कराते हैं। इससे सर्प-भय नहीं रहता। एक बार राक्षसों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। उस समय समुद्र से अतिशय श्वेत उच्चैःश्रवा नाम का एक अश्व निकला, उसे देखकर नागमाता कद्रू ने अपनी सौत विनता से कहा कि देखो, यह अश्व श्वेतवर्ण का है, परंतु इसके बाल काले दीख पड़ते हैं। तब विनता ने कहा न तो यह अश्‍व न तो श्‍वेत है, न काला और न लाल। यह सुनकर कद्रू ने कहा- मेरे साथ शर्त करो कि यदि में इस अश्व के बालों को कृष्ण वर्ण का दिखा दूं तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊंगी। विनता ने यह शर्त स्वीकार कर ली। दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने स्थान को चली गईं। कद्रू ने अपने पुत्र नार्गों को बुलाकर सब वृत्तान्त उन्हें सुना दिया और कहा कि ‘पुत्रो। तुम अश्व के बाल के समान सूक्ष्म होकर उसके शरीर में लिपट जाओ, जिससे यह कृष्ण वर्ण का दिखाई देने लगे। ताकि में अपनी सौत विनता को जीतकर उसको अपनी दासी बना सकूं।

माता के इस वचन को सुनकर नागों ने कहा कि कहा ‘मां! यह छल तो हम लोग नहीं करेंगे, चाहे तुम्हारी जीत हो या हार। छल से जीतना बहुत बड़ा अधर्म है।’ पुत्रों का यह बचन सुनकर कद्रू ने कहा- तुम लोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिये मैं तुम्हें शाप देती हूं कि पांडवों के वंश में उत्‍पन्‍न राजा जनमेजय जब सर्प-सत्र करेंगे, तब उस यज्ञ में तुम सभी अग्रि में जल जाओगे। इतना कहकर कद्रू चुप हो गई। नागगण माता का शाप सुनकर बहुत घबराए और वासुकि को साथमें लेकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे तथा ब्रह्माजी को अपना सारा वृत्तान्त सुनाया। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि वासुके। चिन्ता मत करो। मेरी बात सुनो, यायावर वंश में बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारु नाम वाली बहन का विवाह कर देना और वह जो भी कहे उसका वचन स्‍वीकार करना। उसे आस्तीक नामका विख्यात पुत्र उत्पन्न होगा, वह जनमेजय के सर्पयज्ञ को रोकेगा और तुमलोगों को रक्षा करेगा। ब्रह्माजीके इस वचन को सुनकर नागराज वासुकि आदि अतिशय प्रसन्‍न हो, उन्हें प्रणाम कर अपने लोक में आ गए।

सुमन्तु मुनि ने इस कथा को सुनाकर कहा– राजन् ! यह यज्ञ तुम्हारे पिता राजा जनमेजय ने किया था। यही बात श्रीकृष्णभगवान भी युधिष्ठिर से कही थी कि ‘राजन् ! आज से सौ वर्ष के बाद सर्पयज्ञ होगा, जिसमें बड़े-बड़े विषधर और दुष्ट नाग नष्ट हो जाएंगे। करोड़ों नाग जब अग्रि में दग्ध होने लगेंगे, तव आस्तीक नामक ब्राह्मण सर्पयज्ञ रोककर नागों की रक्षा करेगा। ब्रह्माजी ने पंचमी के दिन वर दिया था और आस्तीक मुनि ने पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी, अतः पंचमी तिथि नागों को बहुत प्रिय है। पंचमी के दिन नागों की पूजाकर यह प्रार्थना करनी चाहिये कि जो नाग पृथ्वी में, आकाश में, स्वर्ग में, सूर्य की किरणों में, सरोवरों में, वापी, कूप, तालाब आदि में रहते हैं, वे सब हमपर प्रसन्‍न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.