माँ गायत्री की व्रत कथा
गंगा दशहरा के अगले दिन यानी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गायत्री जयंती मनायी जाती है। हालांकि कुछ जगहों पर गंगा दशहरा और गायत्री जयंती की तिथि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को माना जाता है। इतना ही नहीं, श्रावण पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती मनाया जाता है।गायत्री माता को सभी वेदों की जननी कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि चारों वेदों का सार गायत्री मंत्र ही है। यदि आप इस मंत्र को समझ गए तो चारों वेदों के सार को भी समझ गए। गायत्री माता से ही वेदों का जन्म हुआ है, इसलिए गायत्री माता को वेदमाता भी कहते हैं। इनकी अराधना स्वयं भगवान शिव, श्रीहरि विष्णु और ब्रह्मा करते हैं, इसलिए गायत्री माता को देव माता भी कहा जाता है।
इस मंत्र के जाप से ज्ञान की प्राप्ति होती है और मन शांत तथा एकाग्र रहता है। ललाट पर चमक आती है। गायत्री माता के विभिन्न स्वरूपों का उनके मंत्रों के साथ जाप करने से दरिद्रता, दुख और कष्ट का नाश होता है, नि:संतानों को पुत्र की प्राप्ति होती है।
देवी गायत्री की वेदों में शिव, विष्णु और ब्रह्मा की देवी के रूप में पूजा की जाती है. इसके अलावा, उन्हें सभी तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती की अभिव्यक्ति के रूप में सम्मानित किया जाता है. गायत्री जयंती को लेकर कई मत हैं. लेकिन माना जाता है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गायत्री जयंती के रूप में मनाया जाता. जो लोग इस दिन सर्वोच्च भक्ति के साथ देवी गायत्री की पूजा करते हैं उन्हें समृद्धि, स्वास्थ्य और सफलता के साथ आध्यात्मिक और सांसारिक खुशी का वरदान मिलता है. भारतीय संस्कृति में गायत्री मंत्र को शक्तिशाली माना गया है. इसके जाप में जीवन के कई कष्ट दूर हो जाते हैं. कहा जाता है कि गायत्री मंत्र का जाप एक निश्चित समय पर निश्चित स्थान पर बैठकर करने से नकारात्मक विचारों का विनाश होता है.
मंत्र –
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
वेदों की जननी हैं गायत्री माता
गायत्री माता को वेदों की जननी कहा गया है. कहा जाता है कि गायत्री माता से ही सभी वेदों की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए उन्हें वेद माता कहा गया. गायत्री मां के मंत्र को भी सर्वश्रेष्ठ मंत्र माना गया है. कहा जाता है कि इस मंत्र में चारों वेदों का सार छिपा है. मां गायत्री देव माता भी कहलाती हैं क्योंकि संसार के निर्माता, संचालक और संहारक यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी इनकी आराधना करते हैं.
कैसे हुई थी गायत्री मां की उत्पत्ति
कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी ने मां गायत्री का आवाह्न किया. तब उन्होंने अपने चारों मुख से गायत्री मंत्र की व्याख्या चार वेदों के रूप में की थी. इससे प्रसन्न होकर गायत्री माता अवतरित हुईं. इसके बाद मां गायत्री को वेदमाता कहा गया और गायत्री मंत्र को चार वेदों का सार बताया गया. पहले गायत्री मंत्र की महिमा सिर्फ देवी देवताओं तक सीमित थी लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या करके इस मंत्र को आम जन तक पहुंचाया
गायत्री माता का विवाह कैसे हुआ
कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी को एक यज्ञ में शामिल होना था, लेकिन उस समय उनकी पत्नी सावित्री उनके साथ नहीं थीं. पत्नी के बगैर कोई भी शुभ कर्म पूर्ण नहीं माना जाता. तब उन्होंने गायत्री माता से विवाह किया और यज्ञ में शामिल हुए. मां गायत्री को ब्रह्मा जी की पत्नी भी माना जाता है. शास्त्रों में ब्रह्मा जी की पांच पत्नियों का उल्लेख है. ये पांच पत्नियां हैं सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती. ज्यादातर सावित्री और सरस्वती के नाम का उल्लेख देखने को मिलता है.
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु, महेश की आराध्य देवी भी गायत्री को ही माना जाता है. सभी देवता भी गायत्री को अपनी माता मानते हैं. गायत्री माता को त्रिदेवी लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती का अवतार माना जाता है.
गायत्री मंत्र जाप की सही विधि
– गायत्री मंत्र का जाप पूजा के आसन पर बैठकर ही करना चाहिए तभी वह लाभकारी होता है.
– जाप में तुलसी एवं चंदन की माला का ही प्रयोग करना चाहिए.
– ब्रह्ममूहुर्त में पूर्व दिशा की ओर मुंह करके 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करें
– अगर गायत्री मंत्र का विधिपूर्वक जप करते समय घी और खील से हवन किया जाए तो शांति मिलती है.
– जप करते वक्त शुद्ध देशी घी से हवन किया जाए तो अकाल मृत्यू का भय नहीं होता.
– हवन में बिल्वपत्र, कमल के पुष्प तथा दूध चढ़ा कर हवन किया जाए तो धन और कीर्ति की प्राप्ति होती है.
– अगर केवल दूध मिलाकर आहुति दी जाए तो पराक्रम की प्राप्ति होती है।