जानें, पवित्र पावन गंगोत्री धाम के बारे में

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गंगा नदी की धारा देवप्रयाग में अलकनंदा में जा मिलती है। इस जगह से भागीरथी और अलकनंदा गंगा कहलाती है। अतः देवप्रयाग को संगम स्थल कहा जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवप्रयाग में गंगा स्नान हेतु आते हैं। कालांतर से गंगोत्री में गंगा माता की पूजा की जाती है।

उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है। इस पावन धरा पर चारधाम यात्रा की जाती है। इनमें एक पवित्र स्थल गंगोत्री है। चारधाम यात्रा के दूसरे पड़ाव में गंगोत्री की यात्रा करने का विधान है। तीन अन्य धाम यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हैं। गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थल है। आसान शब्दों में समझें तो उत्तराखंड के गढ़वाल में गंगोत्री हिमनद से गंगा नदी निकलती है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 3042 मीटर है। नदी की धारा को भागीरथी कहा जाता है। इतिहासकारों की मानें तो पूर्व में गंगा की जलधारा की पूजा की जाती है। समय के साथ गंगोत्री के आसपास शहर और कस्बे बसने लगे। उस समय लोग गंगा नदी के किनारे गंगा मैया और अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति बनाकर पूजा-उपासना किया करते थे।

आधुनिक इतिहास में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा गंगा मंदिर का निर्माण करवाया गया। वहीं, जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने गंगा मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। आज गंगोत्री में बेहद खूबसूरत गंगा मंदिर है। गंगोत्री के आसपास के कई अन्य धार्मिक स्थल हैं। इनमें मुखबा गांव, भैरों घाटी, हर्षिल, नंदनवन तपोवन, गंगोत्री चिरबासा और केदारताल प्रमुख हैं। यह पवित्र स्थल शीत ऋतू में बंद रहता है। इसके बाद ग्रीष्मकाल में खुलता है।

अतः गंगोत्री की धार्मिक यात्रा पर जाने के लिए शुभ समय अप्रैल से लेकर नवंबर है। मानसून के दिनों में यात्रा करना अनुकूल नहीं है। दीवाली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते हैं और अक्षय तृतीया के दिन चार धाम के कपाट खुलते हैं। श्रद्धालु हवाई, सड़क और रेल मार्ग के माध्यम से गंगोत्री पहुंच सकते हैं।

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