हिंदू धर्म में भगवान शिव की अनगिनत लीलाओं में से एक है गोपेश्वर महादेव की लीला। यह कथा भगवान शिव के महत्वपूर्ण मंदिर गोपेश्वर की उत्पत्ति के पीछे छिपे रहस्यों को खोलती है। इस कथा में हमें भगवान शिव के अत्यंत उदार हृदय और उनके भक्तों की प्रति उनकी कृपा का अनुभव होता है।
गोपेश्वर महादेव की लीला कथा में, हमें यह भी दिखाया गया है कि कैसे भगवान शिव अपने भक्तों के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। उनकी लीला के माध्यम से, हमें यह सीख मिलती है कि भगवान की शरण में आने से ही हम अपने जीवन के सभी पहलुओं को पार कर सकते हैं।
गोपेश्वर महादेव की लीला
जब महारास की गूंज सारी त्रिलोकी में गई तो हमारे भोले बाबा के स्वरूप में भी महारास की गूंज गई। मनमोहन की मधुर मुरली ने कैलाश पर विराजमान भगवान श्री शंकर को मोह लिया, समाधि भंग हो गई। बाबा वृंदावन की ओर बावरे उठते चल पड़े।
पार्वती जी भी मनाकर हार गई, किन्तु त्रिपुरारि माने नहीं। भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त श्री आसुरी मुनि, पार्वती जी, नंदी, श्रीगणेश, श्रीकार्तिकेय के साथ भगवान शंकर वृंदावन के वंशीवट पर आ गए। वंशीवट जहाँ महारास हो रहा था, वहाँ गोलोकवासिनी गोपियाँ द्वार पर खड़ी हुई थीं।
श्री यमुना जी ने षोडश श्रृंगार कर दिया, तो सुन्दर बिन्दी, चूड़ी, नूरपुर, ओढ़नी और ऊपर से एक हाथ का घूँघट भी भगवान शिव का कर दिया। साथ ही, दो मंत्रों का उपदेश भगवान शिव के कानों में डाला गया है। प्रसन्न मन से वे गोपी-वेश में महारास में प्रवेश कर गए।
श्री शिवजी मोहिनी-वेष में मोहन की रासस्थली में गोपियों के मण्डल में मिलकर अतृप्त नेत्रों से विश्वमोहन की रूप-माधुरी का पान करने लगे। नटवर-वेषधारी, श्रीरासविहारी, रासेश्वरी, रसमयी श्रीराधाजी एवं गोपियों को नृत्य एवं रास करते हुए देख नटराज भोलेनाथ भी स्वयं ता-ताथया कर नाच उठते हैं। मोहन ने ऐसी मोहिनी वंशी के बजाय सुधि-बुधि भूल गए भोलेनाथ। बनवारी से क्या कुछ छिपा है।
भगवान कृष्ण शिव के साथ थोड़ी देर तो नाचते रहे लेकिन जब पास पहुंचे तो भगवान बोलने की रास के बीच थोड़ा सा हंस-परिहास हो जाए तो रास का आनंद दोगुना हो जाएगा। भगवान बोले की अरी गोपियों तुम मेरे साथ कितनी देर से नृत्य कर रही हो परन्तु मैंने तुम्हारा चेहरा ही नहीं देखा है। क्योंकि कुछ गोपियाँ घूँघट में भी हैं।
गोपियाँ बोली की प्यारी आपसे क्या छुपा रहे हैं? आप देख लो हमारा चेहरा।
लेकिन जब भगवान शंकर ने सुना तो भगवान शंकर बोले कि इन कन्हैया को रास के बीच क्या सुझाया, अच्छा भला रास चल रहा था मुख देखने की क्या ज़रूरत थी। ऐसा मन में सोच रहे थे कि आज कन्हैया फजीहत पर ही तुला है।
भगवान कृष्ण बोले की गोपियों तुम सब लाइन लगा कर खड़ी हो जाओ। और मैं सबका नंबर से दर्शन करूँगा।
भगवान शिव बोले अब तो काम बन गया। लाखों करोड़ गोपियाँ हैं। मैं सबसे अंत में जाकर खड़ा हो गया। कन्हैयां मुख पेट पेट थक जायेगा। और मेरा नंबर भी नहीं आएगा।
सभी गोपियाँ एक पंक्ति में खड़ी हो गईं। और अंत में भगवान शिववत हो गए।
जो कन्हैया की दृष्टि अंत में दिखे तो कन्हैया बोले नंबर इधर से शुरू नहीं होगा नंबर इधर से शुरू होगा।
भगवान शिव बोले की ये तो मेरा ही नंबर आया। भगवान शिव धाकड़ दूसरी और जाने लगे तो भगवान कृष्ण गोपियों से बोले गोपियों पीछे किसी गोपी का मैं मुख दर्शन करेंगे पहले, इस गोपी का मुख दर्शन करेंगे जो मुख दिखने में लाज शर्म कर रही हैं।
इतना खास भगवान शिव दौड़े और दौड़कर भगवान शिव को पकड़ लिया। और घूँघट ऊपर किया और कहा गोपीश्वर आओ। आपकी जय हो। बोलिए गोपेश्वर महादेव की जय। शंकर भगवान की जय।
श्रीराधा आदि श्रीगोपीश्वर महादेव के मोहिनी गोपी के रूप को देखकर आश्चर्य में पड़ गये।
तब श्रीकृष्ण ने कहा: राधे, यह कोई गोपी नहीं है, ये तो साक्षात् भगवान शंकर हैं। हमारे महारास के दर्शन के लिए आलेख गोपी का धारण किया हुआ है।
तब श्रीराधा-कृष्ण ने हँसते हुए शिव जी से पूछा, भगवान! आपने यह गोपी वेष क्यों बनाया?
भगवान शंकर बोले: प्रभो! आपकी यह दिव्य रसमयी प्रेमलीला-महारास देखने के लिए गोपी-रूप धारण किया है।
इस पर प्रसन्न होकर श्रीराधाजी ने श्रीमहादेव जी से वर मांगने को कहा तो श्रीशिव जी ने यह वर माँगा: हम चाहते हैं कि यहाँ आप दोनों के चरण-कमलों में सदा ही हमारा वास हो। आप दोनों के चरण-कमलों के बिना हम कहीं अन्यत्र वास करना नहीं चाहते हैं।
इसके बाद सुन्दर महारास हुआ। भगवान कृष्ण ने कथक नृत्य किया है और भगवान शिव ने तांडव किया है। जिसका वर्णन अगर माँ सरस्वती भी करना चाहें तो नहीं कर सकती हैं। बहुत आनंद आया हैं। भगवान कृष्ण ने ब्रह्मा की एक रात ली है। परन्तु गोपियाँ इसे समझ नहीं पाई। केवल अपनी गोपियों के प्रेम के कारण कृष्ण ने रात को इतना लंबा कर दिया।
गोपियों ने एक रात कृष्ण के साथ अपने प्राणप्रिय पति के रूप में बिताई थी, परन्तु यह कोई साधारण रात नहीं थी। ब्रह्मा की रात्रि थी और लाखों वर्ष तक चलती रही। आज भी वृंदावन में निधिवन में प्रतिदिन भगवान कृष्ण रास करते हैं। कृष्ण के लिए सब कुछ करना संभव है। क्योंकि वो भगवान हैं। इस प्रकार भगवान ने महारास लीला को किया है।
शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनते हैं उन्हें भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता है। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जागृत होता है। और उसके हृदय रोग भी ठीक होते हैं।
रास पंचाध्यायी का अंतिम श्लोक इस बात की पुष्टि भी करता है।
विक्रीडितं व्रतावधुशिरिदं च विष्णों: श्रद्धान्वितोऽनुनुणुयादथवर्णयेघः भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं हृद्रोगमाश्वहिनोत्यचिरेण धीरः
भगवान श्रीकृष्ण ने तंतु कालिंदी के निकट निकुंज के पास, वंशीवट के सम्मुख भगवान महादेवजी को श्रीगोपेश्वर महादेव के नाम से स्थापित कर विराजमान कर दिया। श्रीराधा-कृष्ण और गोपी-गोपियों ने उनकी पूजा की और कहा कि ब्रज-वृंदावन की यात्रा तभी पूरी होगी, जब व्यक्ति आपके दर्शन कर लेगा। आपके दर्शन किये बिना यात्रा अधूरी रहेगी।
भगवान शंकर वृंदावन में आज भी गोपेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं और भक्तों को अपने दिव्य गोपी-वेश में दर्शन दे रहे हैं। गर्भगृह के बाहर पार्वतीजी, श्रीगणेश, श्रीनन्दि विराजमान हैं। आज भी भगवान का गोपीवेश में दिव्य श्रृंगार होता है।
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