द्रोणाचार्य मंदिर

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भारत ऐतिहासिक धरोहरों का देश रहा है। हर राज्य में किसी न किसी युग की प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत समाई हुई है। ऐसा ही एक धार्मिक आस्था का केन्द्र है दनकौर। मान्यता है कि पूरे भारत में एक मात्र दनकौर में ही कौरव और पांडवों के गुरू रहे द्रोणाचार्य का मंदिर है। देश-विदेश से लोग इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर की खासियतों के बारे में बता रहै हैं विवेक कुमारःपहले दनकौर था द्रोणकौरः दनकौर के नामकरण की सार्थकता के संबंध में लोग बताते हैं कि इस स्थान का नाम प्राचीन काल में द्रोणकौर था। जो कि समय बीतने के साथ-साथ दनकौर हो गया। मंदिर के पुजारी विजय शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि एकलव्य ने इसी स्थान पर गुरू द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर महाभारत काल में धनुर्विद्या का कुशल अभ्यास किया था। गुरू द्रोणचार्य द्वारा शिक्षा-दीक्षा न दिए जाने पर भी एकलव्य ने अपनी आस्था के कारण गुरू द्रोण को अपना गुरू स्वीकार कर लिया था। यहीं पर गुरू द्रोणाचार्य ने अर्जुन के समक्ष एकलव्य से अपनी गुरू दक्षिणा में उसके दाहिने हाथ का अंगूठा मांगा था। एकलव्य ने जिस स्थान पर गुरू द्रोणाचार्य की मूर्ति प्रतिष्ठित की थी उस जगह पर आज भी गुरू द्रोणाचार्य का विशाल मंदिर बना हुआ है।अनोखा तालाबः मंदिर के पास एक विशाल तालाब है, जिसे द्रोणाचार्य तालाब के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि यह तालाब भी एकलव्य के समय से मौजूद है। बताया जाता है कि अगर इस पूरे तालाब को पानी से भर दिया जाये तो डेढ़ या दो घंटे में ही यह तालाब खाली हो जाता है। कहा जाता है कि अंग्रेजी शासकों ने इस तालाब का बखूबी परीक्षण किया था, लेकिन वे भी इस विशेषता को बाबा द्रोणाचार्य का चमत्कार मानने पर मजबूर हो गए थे।बाढ़ का पानी भी नहीं पहुंच पाता था मंदिर तकः दनकौर के रहने वाले गुड्डू पंडित बताते हैं कि 30 साल पहले जब यमुना में बाढ़ आ जाती थी तो पूरा कस्बा पानी से लबालब हो जाता था। लेकिन द्रोणाचार्य तालाब का स्तर सामान्य आबादी से नीचा था इसलिए बाढ़ का सारा पानी इस तालाब के माध्यम से सूख जाता था। आस्था है कि गुरू द्रोणाचार्य का आशीर्वाद हमेशा ही इस नगर पर रहा है। रविवार को होती है विशेष पूजाः मंदिर प्रांगण में बांके बिहारी, राधा कृष्ण, महादेव शंकर, हनुमान, शिव दरबार व राम दरबार सहित अनेक देवी देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर भी बने हुए हैं। इस मंदिर में रविवार को सुबह से ही भारी भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है। बताया जाता है कि यहां रविवार का विशेष महत्व है। इस दिन गुरू द्रोण की विशेष पूजा होती है। पर्यटन स्थल घोषित करने की मांगः द्रोणाचार्य मंदिर के कारण इसे पर्यटन स्थल घोषित किए जाने की मांग कई बार शासन से की जा चुकी है, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। श्री द्रोण पर्यटन संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि दनकौर की आबादी 3 लाख के करीब है, किंतु इस कस्बे को अभी तक तहसील का दर्जा भी नहीं मिल सका है।

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