माँ वैष्णो देवी की सम्पूर्ण जन्म कथा
हमारे हिन्दू महाकाव्यों में माता वैष्णो देवी और माता दुर्गा की उत्पत्ति की व्याख्या लगभग एक समान वर्णन है जिस कारण भक्तों के मन में इन दोनों देवियों के अंतर को जानने की जिज्ञासा होती है। माता वैष्णो देवी और माता दुर्गा की उत्त्पति की वर्णन में अनेकों भिन्नता है जैसे माता दुर्गा की उत्पत्ति सतयुग काल के दौरान माना जाता है जब असुरराज महिसासुर को भगवान् ब्रम्हा से प्राप्त वरदान की वह केवल मारा जायेगा तो सिर्फ एक अबला स्त्री के द्वारा। जिससे महिसासुर खुद को अमर मान समस्त लोकों में आतंक मचाने लगा था क्योंकि उस समय तीनो लोक में कोई अबला स्त्री नहीं थी जो महिसासुर का सामना कर उसे मार सके।
तत्पश्चात महिसासुर के बढ़ते पापो को देखते हुए त्रिदेव तथा समस्त देवताओं ने अपनी शक्तियों को एक बिंदु में केंद्रित किया था जिससे माँ दुर्गा प्रकट हुई थी। माता दुर्गा में त्रिदेव तथा समस्त देवताओं की शक्ति समाहित थी। यही कारण है की माता दुर्गा को सर्वशक्तिमान कहा जाता है तथा यही वजह है की महाकाव्यों के योद्धा युद्ध से पहले माता को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना करते थे। माता दुर्गा की उत्त्पति केवल असुरों को नष्ट करने के लिए हुई थी।
बात करें माता वैष्णो देवी की उत्त्पति तो माता की उत्त्पति त्रेतायुग के समय के दौरान माना जाता है। जब एक असुर ने ब्रम्हा जी से जटिल वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई गर्भ से उत्पन्न प्राणी के द्वारा मारा न जाये। तत्पश्चात देवर्षि नारद माता लक्ष्मी तथा भगवान् विष्णु के पास जाकर सृष्टि को उस असुर के आतंक से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते है तब भगवान् विष्णु नारद मुनि को तीनो देवी महादेवी काली, सरस्वती, लक्ष्मी से प्रार्थना करने को कहते है। तत्पश्चात नारद मिनी के आहवान से तीनो देवी प्रकट हुई जिन्होंने माता वैष्णो देवी की उत्पत्ति की तथा अपनी अपनी शक्तियों माँ को प्रदान की।
जिसके बाद माँ को संसार के पालनहार श्री विष्णु ने अपना अंश प्रदान किया जिससे ही माता का नाम वैष्णो देवी पड़ा। तत्पश्चात भगवान विष्णु के आज्ञानुसार माता वैष्णो देवी ने समस्त असुरों का संहार किया था। असुरों के संहार के उपरांत माता वैष्णो देवी ने भगवान् विष्णु से उनमें विलीन होने की इच्छा जताई परन्तु भगवान् विष्णु ने माता को समस्त भूलोक भक्तों के कष्टों को दूर करने के उद्देश्य से माता को दक्षिण रामेश्वरम तट की ओर राजा रत्नाकर पुत्री के रूप में जन्म लेने को कहा तत्पश्चात माता वैष्णो देवी धर्म की रक्षा और कष्टों में घिरे भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए पृथ्वी लोक में अवतार लिया जिनका नाम त्रिकुटा, वैष्णवी पड़ा।
माता ने 9 वर्ष की आयु में पिता से आदेश पाकर समुद्र तट के किनारे तपस्या करने लगी। जहाँ माता को पता चला की भगवान् विष्णु पृथ्वी पर राम अवतार ले चुके है तो माता ने प्रभु को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या में लग गयी।
तत्पश्चात कुछ समय बाद श्री राम प्रभु जब माता सीता की खोज में भाई लक्षण सेना सहित रामेश्वरम तट पहुंचे तो उनकी नजर तपस्या कर रहे दिव्य कन्या पर पड़ी तब माता त्रिकुटा और भगवान् श्री राम की पहली भेंट हुई। माता ने भगवान् के सामने उन्हें पति के रूप में पाने की इच्छा जताई। जिसपर भगवान् ने कहा की हे देवी मैंने इस जन्म में पतिव्रता रहने का वचन लिया है मेरा विवाह सीता के साथ हो चुका है। इसलिए देवी मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता। लेकिन भगवान् त्रिकुटा की भक्ति से बेहद प्रसन्न होते है। माता त्रिकुटा की भक्ति को देख भगवान् श्री राम कहते है हे देवी हम अभी सीता की खोज में लंका की और जा रहे है और मैं जल्द ही वापस आऊँगा, वापस आते समय मैं आपसे मिलूंगा अगर आप मुझे पहचान लेंगी तो आपसे अवश्य विवाह कर लूँगा। लेकिन देवी अपने मुझे नहीं पहचाना तो मैं अपने वचन से मुक्त हो जाऊँगा।
तत्पश्चात समय बीत जाने के बाद श्री राम लंका विजय होकर पुष्पक विमान में अयोध्या लौटते समय अपने वचन को निभाने के लिए हनुमान के साथ मुनि की भेष त्रिकुटा के पास पहुंचे और भिक्षा माँगने लगे। त्रिकुटा भगवान् की माया में फंस गई वह भगवान् को पहचान न पाई। तब भगवान् ने अपने वास्तविक रूप में आ गए, माता त्रिकुटा भगवान् को न पहचानने की भूल की कारन बड़ी दुखी होती है।
तब भगवान् श्री राम त्रिकुटा से कहते है हे देवी आप उत्तरभारत में स्थित मणिक त्रिकुट पर्वत श्रृंखला में स्थित एक गुफा में महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के साथ विराजमान होकर आने वाले युगों में सच्चे भक्तों के दुखों को दूर करें मैं कलयुग में जब कल्कि के रूप में अवतार लूँगा, तब मैं आपसे विवाह करुँगा। तब तक महावीर हनुमान धर्म की रक्षा में आपकी सहायता करेंगे।
हमारे हिन्दू धार्मिक ग्रंथो के अनुसार भगवान श्री राम के आदेश से माता वैष्णो देवी तब से उस गुफा में निवास कर रही है और सच्चे भक्तों की झोली भर रही है।