हर माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष तिथि का व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत की तिथि जब मंगलवार को आती है, तब उसे भौम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। भौम प्रदोष व्रत में कथा सुनना व कहना बहुत पुण्यदायी माना जाता है और इस कथा से पूजा भी पूरी होती है। मान्यता है कि भौम प्रदोष व्रत की कथा सुनने व कहने से देवों के देव महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और आर्थिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
भौम प्रदोष व्रत कथा
सूतजी बोले- अब मैं मंगल त्रयोदशी प्रदोष व्रत का विधि विधान कहता हूं। मंगलवार का दिन व्याधियों का नाशक है। इस व्रत में एक समय व्रती को गेहूं और गुड़ का भोजन करना चाहिए। इस व्रत के करने से मनुष्य सभी पापों व रोगों से मुक्त हो जाता है इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है। अब मैं आपको उस बुढ़िया की कथा सुनाता हूं, जिसने यह व्रत किया व मोक्ष को प्राप्त हुई। अत्यन्त प्राचीन काल की घटना है। एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी। उसके मंगलिया नाम का एक पुत्र था। वृद्धा को हनुमानजी पर बड़ी श्रद्धा थी। वह प्रत्येक मंगलवार को हनुमानजी का व्रत रखकर यथाविधि उनका भोग लगाती थी। इसके अलावा मंगलवार को एक न तो घर लीपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी।
इसी प्रकार से व्रत रखते हुए जब उसे काफी दिन बीत गए तो हनुमानजी ने सोचा कि चलो आज इस वृद्धा की श्रद्धा की परीक्षा करें। वे साधु का वेष बनाकर उसके द्वार पर जा पहुंचे और पुकारा “है कोई हनुमान का भक्त जो हमारी इच्छा पूरी करे।” वृद्धा ने यह पुकार सुनी तो बाहर आई और महाराज क्या आज्ञा है? साधु वेषधारी हनुमान जी बोले कि ‘मैं बहुत भूखा हूं भोजन करूंगा। तू थोड़ी सी जमीन लीप दे।’ वृद्धा बड़ी दुविधा में पड़ गई। अंत में हाथ जोड़कर प्रार्थना की- हे महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त जो काम आप कहें वह मैं करने को तैयार हूं।साधु ने तीन बार परीक्षा करने के बाद कहा- “तू अपने बेटे को बुला मैं उसे औंधा लिटाकर, उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।” वृद्धा ने सुना तो पैरों तले की धरती खिसक गई, मगर वह वचन हार चुकी थी। उसने मंगलिया को पुकार कर साधु महाराज के हवाले कर दिया। मगर साधु ऐसे ही मानने वाले न थे। उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को ओंधा लिटाकर उसकी पीठ पर आग जलवाई।