करवा चौथ व्रत कथा कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत का संबंध मां करवा और गणेश जी से है। इस दिन व्रत के साथ-साथ कथा भी सुनी जाती है, करवा चौथ हिंदू धर्म में महत्त्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह सुहागिनों और अविवाहित कन्याओं के लिए खास महत्त्व रखता है। क्योंकि, इस दिन व्रत रखने से सुहागिन अपने पति की दीर्घायु की काम करती हैं और अविवाहित कन्याएं अपने लिए अच्छे पति की कामनी करती हैं। इस पर्व में व्रत के दौरान कई प्रमुख कथाएं सुनी जाती हैं।
1.साहूकार के सात बेटों और सात बेटियों वाली कथा
एक साहूकार के सात बेटे और सात बेटियां हुआ करती थीं। उसके बेटे अपनी बहनों से बहुत प्यार करते थे। साहूकार की पत्नी के साथ उसकी बहुएं और बेटियां भी करवा चौथ का व्रत रखती थीं। चौथ के दिन जब भाईयों ने भोजन करना शुरू किया, तो उन्होंने अपनी बहनों से भी भोजन करने के लिए कहा, लेकिन उनकी बहनों ने कहा कि वे चांद को अर्घ्य देकर ही अपना व्रत खोलेंगी। इस पर छोटे भाई को अपनी बहनों की हालत नहीं देखी गई और वह एक पेड़ पर चढ़कर एक छलनी में दीपक दिखाने लगा, जिससे बहनों को लगा कि चांद निकल आया। इस पर बहनों ने अपनी भाभियों को भी चांद निकलने के बारे में कहकर व्रत खोलने के लिए कहा। लेकिन, उनकी भाभियां इस बात पर राजी नहीं हुईं। हालांकि, बहनों ने भाभियों की बात नहीं मानी और दीपक को अर्घ्य देकर व्रत खोलना शुरू किया। जैसे ही बहनों ने पहला निवाला खाया, तो छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा खाया, तो खाने में बाल आ गया। वहीं, तीसरा टुकड़ा खाया, तो पति की मृत्यु की खबर आ गई। इस पर वे बहुत दुखी हो जाती हैं, तो उनकी भाभियां बताती हैं कि व्रत को गलत तरीके से खोलने से उनके पति की मृत्यु हो गई है। हालांकि, बहनें बोलती हैं कि वे पति की अंतिम संस्कार नहीं करेंगी और अपनी सतित्त्व से अपनी पति को जीवन देंगी। वह दुखी होकर अपने पति के शव को लेकर एक साल तक बैठी रहीं और उस पर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रहीं। बहनों ने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया। शाम को सुहिगानों से अनुरोध किया कि यम सूई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे अपने जैसी सुहागिन बना दो। इसके फलस्वरूप करवा माता और गणेश जी के आशीर्वाद से उनके पति जीवित हो गए। जैसे माता और गणेश जी ने उनके पति को अमर किया और वैसे ही सभी सुहागिनों के पति अमर रहे।
2.अंधी बूढ़ी मां वाली गणेश जी की कहानी
एक अंधी बुढ़िया हुआ करती थी, जिसके एक बेटा-बहु थे। वह प्रतिदिन भगवान श्रीगणेश का पूजन किया करती थी। बुढ़िया माई की पूजा से खुश होकर एक दिन भगवान श्रीगणेश ने बुढ़िया माई को दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हारी निस्वार्थ पूजा से बहुत खुश हुआ हूं, जो तुम्हें मांगना है, मांगो। मैं तुम्हारी कामना पूरी करूंगा। इस पर माई ने कहा कि मुझे तो कुछ मांगना नहीं आता है। ऐसे में गणेश जी ने कहा कि मैं कल फिर से आऊंगा, जब तक तू अपने बेटे-बहु से पूछ ले। ऐसे में बुढ़िया माई अपने बेटे से पूछती है, तो बेटा बोलता है कि माई धन मांग ले, वहीं बहु बोलती है कि पोता मांग ले। बुढ़िया माई बोलती है कि ये तो अपना-अपना देख रहे हैं, ऐसे में वह पड़ोसियों से पूछती है, तो पड़ोसी बोलते हैं कि माई तेरी कुछ समय की जिंदगी है, तो तू धन और पोते का क्या करेगी। तू एक काम कर, तू अपनी आंखे मांग ले, जिससे बची हुई जिंदगी को आराम से बिता सके। इस पर बूढ़िया माई बोली कि ऐसा क्या मांगूं, जिससे मेरी इच्छा भी पूरी हो जाए और बेटे-बहु का मन भी न दुखे। अगले दिन भगवान श्रीगणेश प्रकट हुए और बूढ़िया माई से मांगने के लिए कहा, जिस पर बूढ़िया माई ने कहा कि हे विघ्नहर्ता, अन्नदेवो, धनदेवो, निरोगी काया देवो, अमर सुहाग देवो, दीदा गोढ़ा देवो, सोने के कटोरे में पोते को दूध पीता देखूं, अमर सुहाग देवो और समस्त परिवार सुख देवो और आपके श्रीचरणों में मुझे स्थान देवो। इस पर गणेश जी ने कहा कि बूढ़िया माई तूने तो मुझे ठग लिया, तू तो कह रही थी तुझे कुछ मांगना नहीं आता है। मैं तेरी सभी इच्छाएं पूरी करूंगा। जिस प्रकार भगवान श्रीगणेश ने बूढ़िया माई की इच्छा पूरी की, इसी प्रकार सभी की इच्छाएं पूरी हों और सभी पर भगवान पर आशीर्वाद बना रहे।