नवरात्रि नौ दिनों तक चलने वाला व्रत, पूजा विधि और महत्त्व जाने यहाँ

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नवरात्रि नौ दिनों तक चलने वाला व्रत, पूजा एवं मेलों का उत्सव है, सभी नौ दिन माँ आदिशक्ति के भिन्न-भिन्न रूपों को समर्पित हैं। देवी का प्रत्येक रूप, एक नवग्रह(चंद्रमा, मंगल, शुक्र, सूर्य, बुद्ध, गुरु, शनि, राहू, केतु) की स्वामिनी तथा उनसे जुड़ी बाधाओं को दूर व उन्हें प्रवल करने हेतु भी पूजा जाता है।

नवरात्रि छः महिने के अंतराल के साथ वर्ष में दो बार मनाई जाती है, जिसे चैत्र नवरात्रि तथा शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि को नवदुर्गा अथवा नौदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
शारदीय नवरात्रि 2024: 3 अक्टूबर 2024 से स्टार्ट होकर 12 अक्टूबर 2024 को समाप्त हो रही है।

संबंधित अन्य नाम नवदुर्गा, दुर्गा पूजा, चैत्र नवरात्रि, वसंत नवरात्रि, महा नवरात्रि, राम नवरात्रि, राम नवमी,नवरात्रे, नौरात्रे, गुड़ी पड़वा, उगादी
शुरुआत तिथि चैत्र /अश्विन शुक्ल प्रतिपद
उत्सव विधि व्रत, हवन, जागरण, जागराता, माता की चौकी

प्रतिपदा: माँ शैलपुत्री

3 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

इन्हें हेमावती तथा पार्वती के नाम से भी जाना जाता है।

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल प्रतिपदा
सवारी: वृष, सवारी वृष होने के कारण इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।
अत्र-शस्त्र: दो हाथ- दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल धारण किए हुए हैं।
मुद्रा: माँ का यह रूप सुखद मुस्कान और आनंदित दिखाई पड़ता है।
ग्रह: चंद्रमा – माँ का यह देवी शैलपुत्री रूप सभी भाग्य का प्रदाता है, चंद्रमा के पड़ने वाले किसी भी बुरे प्रभाव को नियंत्रित करती हैं।
शुभ रंग: पीला

द्वितीय: माँ ब्रह्मचारिणी

4 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

ऐसे पड़ा मां का नाम ब्रह्मचारिणी- नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के तपस्विनी रूप की पूजा होती है। शास्त्रों के अनुसार, मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। नारद मुनि के कहने पर, उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। हजारों वर्षों तक उनकी कठोर तपस्या के कारण ही उन्हें तपस्विनी या ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। इस कठिन तपस्या के दौरान, उन्होंने कई वर्षों तक बिना कुछ खाए-पिए कठोर तपस्या की और महादेव को प्रसन्न किया। उनके इसी तप के प्रतीक के रूप में नवरात्र के दूसरे दिन इनके इसी रूप की पूजा और स्तवन किया जाता है। नवरात्रि के दूसरे दिन, मां के इस रूप की पूजा उनके दृढ़ संकल्प और समर्पण के प्रतीक के रूप में की जाती है। यह दिन हमें सिखाता है कि सच्ची श्रद्धा और दृढ़ निश्चय से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल द्वितीया
अन्य नाम: देवी अपर्णा
सवारी: नंगे पैर चलते हुए।
अत्र-शस्त्र: दो हाथ- माँ दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हुए हैं।
ग्रह: मंगल – सभी भाग्य का प्रदाता मंगल ग्रह।
शुभ रंग: हरा

 

तृतीया: माँ चंद्रघंटा

5 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

क्‍यों कहते हैं मां को चंद्रघण्‍टा- मां चंद्रघण्‍टा का रूप अलौकिक तेजमयी और ममतामयी माना गया है। मां के इस रूप की पूजा करने से आपको जीवन के हर क्षेत्र में मनचाही सफलता प्राप्‍त होती है। मां के मस्‍तक पर अर्द्धचंद्र के आकार का घंटा शोभायमान है, इसलिए देवी का नाम चंद्रघण्‍टा पड़ा। नवरात्रि के तीसरे दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर मां की पूजा करनी चाहिए। उनकी पूजा में लाल पीले गेंदे के फूलों का प्रयोग करना अच्‍छा होता है। पूजा में शंख और घंटों का प्रयोग करने से मां की कृपा आपको प्राप्‍त होती है।

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल तृतीया
सवारी: बाघिन
अत्र-शस्त्र: दस हाथ – चार दाहिने हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल तथा वरण मुद्रा में पाँचवां दाहिना हाथ। चार बाएं हाथों में कमल का फूल, तीर, धनुष और जप माला तथा पांचवें बाएं हाथ अभय मुद्रा में।
मुद्रा: शांतिपूर्ण और अपने भक्तों के कल्याण हेतु।
ग्रह: शुक्र
शुभ रंग: स्लेटी

चतुर्थी: माँ कूष्माण्डा

7 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

मां को क्‍यों कहते हैं कुष्‍मांडा- देवी कुष्‍मांडा की महिमा के बारे में देवी भागवत पुराण में विस्‍तार से बताया गया है मां दुर्गा के चौथे रूप ने अपनी मंद मुस्‍कान से ब्रह्मांड की उत्‍पत्ति की थी, इसलिए मां का नाम कुष्‍मांडा देवी पड़ा। ऐसी मान्‍यता है कि सृष्टि के आरंभ में चारों तरफ अंधियारा था और मां ने अपनी हल्‍की हंसी से पूरे ब्रह्मांड को रच डाला। सूरज की तपिश को सहने की शक्ति मां के अंदर है।

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल चतुर्थी
अन्य नाम: अष्टभुजा देवी
सवारी: शेरनी
अत्र-शस्त्र: आठ हाथ – उसके दाहिने हाथों में कमंडल, धनुष, बाड़ा और कमल है और बाएं हाथों में अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र है।
मुद्रा: कम मुस्कुराहट के साथ।
ग्रह: सूर्य – सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदाता।
शुभ रंग: सफेद

पञ्चमी: माँ स्कन्दमाता

8 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

स्‍कंदमाता के विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में लिए हैं और नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प सुशोभित है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में है और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम श्‍वेत और ये स्‍वयं कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल पञ्चमी
अन्य नाम: देवी पद्मासना
सवारी: उग्र शेर
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – माँ अपने ऊपरी दो हाथों में कमल के फूल रखती हैं है। वह अपने एक दाहिने हाथ में बाल मुरुगन को और अभय मुद्रा में है। भगवान मुरुगन को कार्तिकेय और भगवान गणेश के भाई के रूप में भी जाना जाता है।
मुद्रा: मातृत्व रूप
ग्रह: बुद्ध
शुभ रंग: लाल

षष्ठी: माँ कात्यायनी

9 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

माँ पार्वती ने राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए देवी कात्यायनी का रूप धारण किया। यह देवी पार्वती का सबसे हिंसक रूप है, इस रूप में देवी पार्वती को योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी पार्वती का जन्म ऋषि कात्या के घर पर हुआ था और जिसके कारण देवी पार्वती के इस रूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है।

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल षष्ठी
सवारी: शोभायमान शेर
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण किए हुए है और अपने दाहिने हाथ को अभय और वरद मुद्रा में रखती है।
मुद्रा: सबसे हिंसक रूप
ग्रह: गुरु
शुभ रंग: गहरा नीला

सप्तमी: माँ कालरात्रि

10 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

जब देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों का वध लिए तब माता ने अपनी बाहरी सुनहरी त्वचा को हटा कर देवी कालरात्रि का रूप धारण किया। कालरात्रि देवी पार्वती का उग्र और अति-उग्र रूप है। देवी कालरात्रि का रंग गहरा काला है। अपने क्रूर रूप में शुभ या मंगलकारी शक्ति के कारण देवी कालरात्रि को देवी शुभंकरी के रूप में भी जाना जाता है।
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. मां कालरात्रि, मां दुर्गा के नौ रूपों में से सातवां रूप हैं. इन्हें मां पार्वती का रूप भी माना जाता है. मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है. इनकी पूजा से भय, दुर्घटना, और रोगों का नाश होता

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल सप्तमी
अन्य नाम: देवी शुभंकरी
सवारी: गधा
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – दाहिने हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं, और बाएं हाथों में तलवार और घातक लोहे का हुक धारण किए हैं।
मुद्रा: देवी पार्वती का सबसे क्रूर रूप
ग्रह: शनि
शुभ रंग: गुलाबी

अष्टमी: माँ महागौरी

11 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह साल की उम्र में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं। अपने अत्यधिक गौर रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। अपने इन गौर आभा के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। माँ महागौरी केवल सफेद वस्त्र धारण करतीं है उसी के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है।

नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मां महागौरी की पूजा की जाती है. इस दिन को दुर्गा अष्टमी या महाअष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. मां महागौरी को सभी कामनाओं को पूरी करने वाली माना जाता है. इनकी पूजा से धन-वैभव, सुख-शांति, और आलौकिक सिद्धियां की प्राप्ति होती है

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल अष्टमी
अन्य नाम: श्वेताम्बरधरा
सवारी: वृष
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – माँ दाहिने हाथ में त्रिशूल और अभय मुद्रा में रखती हैं। वह एक बाएं हाथ में डमरू और वरदा मुद्रा में रखती हैं।
ग्रह: राहू
मंदिर: हरिद्वार के कनखल में माँ महागौरी को समर्पित मंदिर है।
शुभ रंग: बैंगनी

 

नवमी: माँ सिद्धिदात्री

11 October 2024

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

शक्ति की सर्वोच्च देवी माँ आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं। यहां तक ​​कि भगवान शिव ने भी देवी सिद्धिदात्री की सहयता से अपनी सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं। माँ सिद्धिदात्री केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं बल्कि देव, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्धों द्वारा भी पूजी जाती हैं। जब माँ सिद्धिदात्री शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुईं, तब भगवान शिव को र्ध-नारीश्वर का नाम दिया गया। माँ सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान हैं।

माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।

अष्ट(8) सिद्धियां: अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।

तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल नवमी
आसन: कमल
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – दाहिने हाथ में गदा तथा चक्र, बाएं हाथ में कमल का फूल व शंख शोभायमान है।
ग्रह: केतु

 

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