वामन अवतार पौराणिक कथा
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती मनाई जाती है. इसी दिन भगवान विष्णु ने धरती पर वामन अवतार में जन्म लिया था. वामन देव भगवान विष्णु के पांचवे अवतार माने जाते हैं. इस दिन व्रत रखने का खास महत्व है. जो भी सच्चे दिल से व्रत रख वामन देव की पूजा करता है, उसे सभी पापों से छुटकारा मिलता है और घर में सुख समृद्धि का वास होता है.
इस साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 26 सितंबर को सुबह 5 बजे शुरू हो रही है और 27 सितंबर को सुबह 01 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में वामन जयंती का व्रत 26 सितंबर को ही रखा जाएगा. मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इंद्र देव को स्वर्ग का राज पाठ वापस लौटाने के लिए और प्रहलाद के पौत्र अत्यंत बलशाली दैत्यराज बलि के घमंड को तोड़ने के लिए लिया था.
आइए जानते हैं क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा
दैत्यराज बलि ने अपने बल से तीनों लोकों पर कब्जा जमा लिया और इंद्र देव से स्वर्ग लोक भी छीन लिया. राजा बलि भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था और खूब दान पुण्य भी करता था, लेकिन इसके बावजूद उसे अपनी शक्ति पर इतना घमंड हो गया कि स्वर्ग का स्वामी बनते ही सभी देवी देवताओं को परेशान करने लगा. उसके अत्याचारों से तंग आकर सभी देवी देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई. श्री हरि विष्णु ने उन्हें आश्वसान दिया कि वह तीनों लोकों को राजा बलि के कब्जे से मुक्त करा कर रहेंगे. अपने इस वचन को निभाने के लिए उन्होंने त्रेतायुग में धरती पर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर माता अदिति और कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया
बौने ब्राह्मण का रूप धरकर पहुंचे राजा बलि के पास
इसके बाद वह एक बौने ब्राह्मण का रूप धरकर राजा बलि के पास पहुंच गए. उनके एक हाथ में छाता और दूसरे में लकड़ी थी. उन्होंने राजा बलि से अपने रहने के लिए तीन पग भूमी दान में देने को कहा. गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि से इस तरह का कोई वचन देने से पहले चेतावनी भी दी लेकिन इसके बावजूद राजा बलि ने ब्राह्मण पुत्र को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया. इसके बाद वामन देव ने इतना विशाल रूप धारण किया कि अपने एक पैर से पूरी धरती और दूसरे पैर से पूरे स्वर्ग लोक को नाप लिया. इसके बाद जब तीसरे पैर के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना सिर आगे करते हुए इस वामन देव को इस पर पैर रखने के लिए कहा. भगवान विष्णु बलि की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया. इसके बाद जैसे ही वामन देव ने राजा बलि के सिर पर अपना पैर रखा, वो तुरंत पाताल लोक पहुंच गए