द्वारकाधीश कृष्ण मंदिर उसी जगह है, जहां हजारों साल पहले द्वापर युग में भगवान कृष्ण का निवास स्थाल हरि गृह हुआ करता था. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने करवाया है. द्वारका धाम सात मोक्ष पुरी में से एक माना जाता है। द्वारका नाम द्वार से लिया गया है, और इसे मोक्ष के प्रवेश द्वार के रूप मे माना जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा परिभाषित चार धाम, चार वैष्णव तीर्थ हैं।
गुजरात के द्वारका को भगवान श्रीकृष्ण की नगरी कहा गया है. जो आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के 4 धामों में से एक है. अनुमान लगाया जाता है कि यहां द्वारकाधीश मंदिर 2500 साल पुराना है. द्वारकाधीश नाम का अर्थ है, द्वारका के राजा यानी भगवान श्री कृष्ण। मुख्य मंदिर 5 मंजिला, 72 स्तंभों के द्वारा स्थापित है जिसे जगत मंदिर तथा निज मंदिर के नाम में भी जाना जाता है। मंदिर में दो द्वार हैं, जिसमें उत्तर दिशा की ओर मौजूद मोक्ष द्वार कहलाता है, वहीं स्वर्ग द्वार दक्षिण दिशा में है. परंपरा के अनुसार यह मूल मंदिर श्री कृष्ण के पोते वज्रभ ने गोमती नदी के किनारे भगवान कृष्ण की आवासीय जगह पर बनाया था। हालांकि स्पष्ट करेंकि, यह गोमती नदी उत्तर भारत की वह गोमती नदी नहीं है जो गंगा नदी मे मिलती है। मंदिर के शिखर पर 52 यार्ड के ही ध्वज का दिन मे पाँच वार उतरने और चढ़ने का विधान है।
कहते हैं श्रीकृष्ण उत्तराखंड के सरोवर में स्नान के बाद द्वारका में अपने वस्त्र बदलते हैं, फिर ओडिशा जगन्नाथ पुरी में भोजन करते हैं और विश्राम रामेश्वरम धाम में करते हैं. इस दौरान वह भक्तों के बीच आते हैं. इस मंदिर में ध्वज पूजा का विशेष महत्व है. इस झंडे की खासियत यह है कि हवा की दिशा जो भी हो, यह झंडा हमेशा पश्चिम से पूर्व की ओर लहराता है. यहां मंदिर का ध्वज दिन में 5 बार बदला जाता है. जिसका निश्चित समय है.