जब चिंता में डूबे विभीषण को प्रभु राम ने गिनाईं अपने ‘अदृश्य’ रथ की खूबियां

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सोच से छुड़ाने वाले श्री रामजी बहुत प्रकार से सोच कर रहे हैं. उनके कमल की पंखुड़ी के समान नेत्रों से (विषाद के आंसुओं का) जल बह रहा है. भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान ने लीला करके मनुष्य की दशा दिखलाई है. प्रभु के (लीला के लिए किए गए) प्रलाप को कानों से सुनकर वानरों के समूह व्याकुल हो गए. (इतने में ही) हनुमानजी आ गए, जैसे करुणरस (के प्रसंग) में वीर रस (का प्रसंग) आ गया हो. श्री रामजी हर्षित होकर हनुमानजी से गले मिले. प्रभु परम सुजान (चतुर) और अत्यंत ही कृतज्ञ हैं. तब वैद्य सुषेण ने तुरंत उपाय किया, जिससे लक्ष्मणजी हर्षित होकर उठ बैठे. प्रभु भाई को हृदय से लगाकर मिले. भालू और वानरों के समूह सब हर्षित हो गए. फिर हनुमानजी ने वैद्य को उसी प्रकार वहां पहुंचा दिया, जिस प्रकार वे पहले उसे ले आए थे.

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