इतिहासकारों की मानें तो पूर्व में गंगा की जलधारा की पूजा की जाती है। समय के साथ गंगोत्री के आसपास शहर और कस्बे बसने लगे। उस समय लोग गंगा नदी के किनारे गंगा मैया और अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति बनाकर पूजा-उपासना किया करते थे।
गंगा नदी की धारा देवप्रयाग में अलकनंदा में जा मिलती है। इस जगह से भागीरथी और अलकनंदा गंगा कहलाती है। अतः देवप्रयाग को संगम स्थल कहा जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवप्रयाग में गंगा स्नान हेतु आते हैं। कालांतर से गंगोत्री में गंगा माता की पूजा की जाती है।