संकष्टी चतुर्थी की पौराणिक कथा
यह पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस अवसर पर भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना और व्रत करने से साधक को सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पूजा सफल होती है। प्रत्येक माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन उनमें से एक कथा देवों के देव महादेव और माता पार्वती से संबंधित है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार शिव और पार्वती के बीच चौपड़ के खेल की शुरुआत हुई। इस दौरान वहां कोई भी नहीं था। जो खेल में अपनी निर्णायक की भूमिका निभा सके। ऐसे में भगवान शिव और माता पार्वती ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी। उन्होंने मिट्टी की मूर्ति से बने बालक को चौपड़ के खेल में हार-जीत का फैसला लेने का निर्देश दिया।
इसके बाद दोनों के बीच फिर से खेल शुरू हुआ। हर बार माता पार्वती भगवान शिव को हरा रही थीं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। इस गलती को देख माता पार्वती क्रोधित हो गई। उन्होंने गुस्से में आकर बालक को लंगड़ा होने का श्राप दिया। इसके बाद बालक ने अपनी गलती की माफी मांगी, लेकिन माता पार्वती ने कहा कि मैं इस श्राप को अब वापस नहीं ले सकती। इस श्राप को खत्म करने के लिए बालक ने देवी से उपाय जाना।
देवी ने उपाय में बताया कि फाल्गुन महीने की संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की सच्चे मन से पूजा और व्रत करों। इसके बाद बालक ने ठीक ऐसा ही किया, जिसके बाद वह श्राप से मुक्त हो गया। तभी फाल्गुन महीने की संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत करने की शुरुआत हुई।