मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर की कैसे हुई स्थापना? और जानें महत्व और कथा ,

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मल्लिकार्जुन द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक हैं. सावन के पवित्र माह में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं. जानते हैं इस धाम की महीमा.

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक हैं.महादेव की महीमा निराली है. 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में भोलेनाथ भारत की चारों दिशाओं में विराजमान हैं.  शिव का ये धाम आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट के पास श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है. इस पवित्र पर्वत को दक्षिण का कैलाश माना जाता है. मान्यता है कि सावन के पवित्र माह में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं. आइए जानते हैं यहां मां पार्वती संग कैसे विराजमान हुए भगवान शंकर.

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में समाई शिव-पार्वती की ज्योतियां

धर्म ग्रंथों में मल्लिकाजुर्न के अर्थ का वर्णन किया गया है. मल्लिका यानी की पार्वती और अर्जुन का अर्थ भगवान शंकर है. पुराणों के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में महादेव और मां पार्वती की संयुक्त रूप से दिव्य ज्योतियां विद्यमान हैं. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का मंदिर तक पहुंचने के लिए घने जंगलों से होकर गुजरना पड़ता.

माता-पिता से नाराज हुए कार्तिकेय

शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार पहले विवाह करने को लेकर शिव जी-माता पार्वती के पुत्र गणेश जी और कार्तिकेय में झगड़ा हो गया. विवाद सुलझाने के लिए शंकर जी बोले जो पहले पृथ्वी का चक्कर लगाएगा उसका विवाह पहले होगा. कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, लेकिन गणेश ने अपनी चतुर बुद्धि का उपयोग किया और मां पार्वती -भोलेनाथ को सारा संसार मानकर उनके चारों ओर चक्कर लगाने लगे. परिणाम स्वरूप गणेश जी का विवाह पहले हो गया. कार्तिकेय जब वापस लौटे तो गणेश को पहले विवाह करते देख वो माता-पिता से नारज हो गए.

आप श्रीशैलम बांध और मंदिर दोनों को एक साथ देख सकते हैं। यह हिल स्टेशन पर स्थित है, इसलिए यह सुंदरता और जलवायु में बहुत अधिक सुगंध जोड़ता है। यह शहर पहाड़ों की चोटी पर और कृष्णा नदी के किनारे स्थित है। रात में दर्शन के लिए वाहन चलाने से बचें, लगभग 27 किमी के रास्ते में वन टाइगर रिजर्व है। वन चेक पोस्ट केवल सुबह 6 बजे से रात 9 बजे के बीच यातायात की अनुमति देते हैं।

कार्तिकेय से मिलने के लिए धरा ज्योति का रूप

कार्तिकेय नाराज होकर क्रोंच पर्वत पर चले गए. देवी-देवताओं ने उन्हें वापस आने का आग्रह किया लेकिन वो नहीं माने. इधर पुत्र वियोग में शंकर-पार्वती दुखी थे. दोनों पुत्र से मिलने क्रोंच पर्वत पर पहुंचे तो कार्तिकेय उन्हें देखकर और दूर चले गए. अंत में पुत्र के दर्शन की लालसा में भगवान शंकर ने ज्योति रूप धारण कर लिया और यहीं विराजमान हो गए. तब से ये शिव धाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हो गया. माना जाता हर अमावस्या पर शिव जी और पूर्णिमा पर मां पार्वती यहां आते हैं.

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