सोमनाथ ज्योतिर्लिंग,प्रथम ज्योतिर्लिंग है , चंद्रमा ने की थी स्थापना, जानें महत्व और कथा

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श्री  सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत के बारह(12) ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्रथम है।  सोमनाथ मे सोम का अर्थ है चंद्र देव (चंद्रमा), तथा नाथ का अर्थ भगवान है। सोमनाथ प्राचीन काल से ही तीन नदियों कपिला, हिरण्या और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर स्थित है।

सावन के महीने में ज्योतिर्लिंग के दर्शन और इनका नाम लेना बहुत ही शुभ माना गया है. देश में 12 ज्योतिर्लिंग हैं. सौराष्ट्र स्थित सोमनाथ मंदिर को प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है.

भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर का उद्घाटन करते हुए अपने संबोधन मे कहा – सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण उस दिन तक पूरा हुआ नहीं माना जाएगा जब न केवल इस आधार पर एक भव्य मंदिर बन गया है, बल्कि प्रत्येक भारतीयों के जीवन मे वह वास्तविक समृद्धि होगी, जिस सघन समृद्धि का यह प्राचीन  सोमनाथ मंदिर एक प्रतीक था। उन्होंने आगे शब्द जोड़ते हुए कहा, –

सोमनाथ मंदिर दर्शाता है कि पुनर्निर्माण रूपी शक्ति हमेशा विनाश रूपी नकारात्मकता से विजयी होती है।मंदिर के केंद्रीय हॉल को अष्टकोणीय शिव-यंत्र का आकार दिया गया है। मंदिर को समुद्र की दीवार से सुरक्षा प्रदान की गई है, इसका अर्थ है कि उस विशेष देशांतर पर मंदिर और दक्षिणी ध्रुव के बीच कोई भूमि नहीं है। मंदिर मे यह स्थिति तीर-स्तंभ द्वारा इंगित की गई है, जिसे संस्कृत में बाणस्तंभ कहा जाता है।

मंदिर के मुख्य गर्भगृह में, मंदिर के अधिकृत पुजारियों को छोड़कर सभी का प्रवेश वर्जित है। सभी इलेक्ट्रॉनिक / इलेक्ट्रिकल उपकरण, गैजेट आदि का मंदिर परिसर में ले जाना सख्ती के साथ प्रतिबंधित हैं। इन सभी वस्तुओं को रखने के लिए मंदिर ट्रस्ट की ओर से नि:शुल्क क्लोक रूम / लॉकर की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।मान्यता है कि  सावन के महीने में जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रात: इन ज्योतिर्लिंग के नामों का जाप करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. लोक परलोक दोनों में इसका लाभ प्राप्त होता है. सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. किसी भी कार्य को करने से पहले यदि सभी ज्योतिर्लिंग का नाम लिया जाता है तो उस कार्य के सफल होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं. साथ ही भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है.

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग यह पहला ज्योतिर्लिंग है. जो कि गुजरात के काठियावाड़ स्थित प्रभास में विराजमान हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी नर लीला समाप्त की थी. माना जाता है कि सोमनाथ के शिवलिंग की स्थापना खुद चंद्रमा ने की थी. ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को विशेष महत्व प्रदान किया गया है. चंद्रमा द्वारा इस शिवलिंग को स्थापित किए जाने के कारण इसे सोमनाथ कहा जाता है.

पौराणिक कथा: चंद्रमा को मिली थी श्राप से मुक्ति पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था. रोहिणी दक्ष की सभी कन्याओं में से सबसे अधिक सुदर थी. चंद्रमा रोहिणी को अधिक प्रेम करते थे. इस बात से दक्ष की अन्य पुत्रियां रोहिणी से बैर रखने लगीं. जब यह बात प्रजापति दक्ष को पता चली तो उसने क्रोधित होकर चंद्रमा को धीरे- धीरे क्षीण (खत्म) होने का श्राप दे दिया. इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने चंद्रमा को प्रभास क्षेत्र जहां पर सोमनाथ का मंदिर है वहां पर भगवान शिव की तपस्या करने को कहा.

चंद्रमा ने सोमनाथ में शिवलिंग की स्थापना करके उनकी पूजा की. कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शाप से मुक्त कर दिया और अमरत्व का वरदान दिया. शंकर जी के वरदान के कारण ही चंद्रमा कृष्ण पक्ष को एक-एक कला क्षीण (खत्म) होता है और शुक्ल पक्ष को एक-एक कला बढ़ता है और हर पूर्णिमा को पूर्ण रूप को प्राप्त होता है. पंचांग इसी आधार पर कार्य करता है. शाप से मुक्ति मिलने के बाद चंद्रमा ने भगवान शिव को माता पार्वती के साथ सोमनाथ में ही रहने की प्रार्थना की. तब से भगवान शिव सोमनाथ में ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करते हैं.

 

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